एक कविता लोकनायक श्री जय प्रकाश नारायण, शहीद भगत सिंह को समर्पित
कर्णधार बन हाथ में लगाम लेना चाहता हूँ
क्रांति के गीत गाना चाहता हूँ
भेद सर उठा रहा
मनुष्य को मिटा रहा
दे बदल नसीब, गरीब का सलाम लूँ
अपने जीवन को त्याग का एक नाम देना चाहता हूँ
क्रांति के गीत गाना चाहता हूँ
क्रांति के गीत गाना चाहता हूँ
भेद सर उठा रहा
मनुष्य को मिटा रहा
दे बदल नसीब, गरीब का सलाम लूँ
अपने जीवन को त्याग का एक नाम देना चाहता हूँ
क्रांति के गीत गाना चाहता हूँ
स्वतन्त्रता ये नहीं की एक तो अमीर हो
दूसरा मनुष्य तो रहे मगर फ़क़ीर हो
वर्ग की तन तानी बढ़ रही
लगता जैसे मुझको पुकार रही
अन्याय का बस एक और इशारा चाहता हूँ
क्रांति के गीत गाना चाहता हूँ
दूसरा मनुष्य तो रहे मगर फ़क़ीर हो
वर्ग की तन तानी बढ़ रही
लगता जैसे मुझको पुकार रही
अन्याय का बस एक और इशारा चाहता हूँ
क्रांति के गीत गाना चाहता हूँ
चाहते थक कर सब कमरे का एक शांत कोना
अब न सेह सकेगी वृद्धा भूमि सब का भार ढोना
न्याय के इस आगाज़ को चिंगारी देना चाहता हूँ
जीर्ण जग में फिर से नयी दुनिया बसाना चाहता हूँ
क्रांति के गीत गाना चाहता हूँ
अब न सेह सकेगी वृद्धा भूमि सब का भार ढोना
न्याय के इस आगाज़ को चिंगारी देना चाहता हूँ
जीर्ण जग में फिर से नयी दुनिया बसाना चाहता हूँ
क्रांति के गीत गाना चाहता हूँ
सबमे है एक अर्जुन
पर रण से डरते हैं सब
लेकिन इस अन्याय के विरुद्ध एक और महाभारत होना जरुरी है
केशव के आवाज़ बन
हर एक अर्जुन को जगाऊँ
ऐसा एक स्वर बनना चाहता हूँ
क्रांति के गीत गाना चाहता हूँ
पर रण से डरते हैं सब
लेकिन इस अन्याय के विरुद्ध एक और महाभारत होना जरुरी है
केशव के आवाज़ बन
हर एक अर्जुन को जगाऊँ
ऐसा एक स्वर बनना चाहता हूँ
क्रांति के गीत गाना चाहता हूँ
मंद गति से बहने वाली
अदृश्य हो पास ही रहती
जनता के दुःख है जैसे हवा
मंद हवा को गर्म सांसों में बदलना होगा
अदृश्य इस हवा को बवंडर बनाना चाहता हूँ
क्रांति के गीत गाना चाहता हूँ
अदृश्य हो पास ही रहती
जनता के दुःख है जैसे हवा
मंद हवा को गर्म सांसों में बदलना होगा
अदृश्य इस हवा को बवंडर बनाना चाहता हूँ
क्रांति के गीत गाना चाहता हूँ
छा गया ताम का अँधेरा
मनुष्य ही मनुष्य को डरा रहा
अन्याय का अँधेरा अब छाँटना चाहिए
इस अँधेरे में प्रकाश का एक दीप बनना चाहता हूँ
सूरज जो छांट दे इस अँधेरे को वो सूरज बनना चाहता हूँ
क्रांति के गीत गाना चाहता हूँ
मनुष्य ही मनुष्य को डरा रहा
अन्याय का अँधेरा अब छाँटना चाहिए
इस अँधेरे में प्रकाश का एक दीप बनना चाहता हूँ
सूरज जो छांट दे इस अँधेरे को वो सूरज बनना चाहता हूँ
क्रांति के गीत गाना चाहता हूँ
चाहता हूँ बांधना गतिविधि समय की
भुलाना चाहता हूँ चिंता प्रलय की
आग पानी में लगाना चाहता हूँ
क्रान्ति के गीत गाना चाहता हूँ
भुलाना चाहता हूँ चिंता प्रलय की
आग पानी में लगाना चाहता हूँ
क्रान्ति के गीत गाना चाहता हूँ
व्यंग्य करता है मुझ पर अब मनुजता पर मनुज का ये छुद्र जीवन
हँस रहा मुझ पर जवानी की उमंगों का लड़कपन
जवानी के इस जोश में किसी ने कहा था -
“सत्ता के बहरों को क्रांति के विस्फोट सुनना चाहता हूँ..
इंक़लाब के नारे लगा के क्रांति के गीत गाना चाहता हूँ
हाँ मैं भगत सिंह हूँ क्रांति के गीत गाना चाहता हूँ “
हँस रहा मुझ पर जवानी की उमंगों का लड़कपन
जवानी के इस जोश में किसी ने कहा था -
“सत्ता के बहरों को क्रांति के विस्फोट सुनना चाहता हूँ..
इंक़लाब के नारे लगा के क्रांति के गीत गाना चाहता हूँ
हाँ मैं भगत सिंह हूँ क्रांति के गीत गाना चाहता हूँ “
देश लज्जित हो रहा देख के इस नरक की लखर विषमता
आज सुख भी रो रहा देख कर दुःख की विवशता
रोती जनता को देख कर किसी ने कहा था तब -
“इंदिरा का आसान डगमगाना चाहता हूँ.…
आने वाली जनता के लिए सिंहासन खली करना चाहता हूँ..
जनता के अवसादों की कहानी सुन्ना और समझना चाहता हूँ
हाँ मैं JP हूँ, क्रांति के गीत गाना चाहता हूँ
आज सुख भी रो रहा देख कर दुःख की विवशता
रोती जनता को देख कर किसी ने कहा था तब -
“इंदिरा का आसान डगमगाना चाहता हूँ.…
आने वाली जनता के लिए सिंहासन खली करना चाहता हूँ..
जनता के अवसादों की कहानी सुन्ना और समझना चाहता हूँ
हाँ मैं JP हूँ, क्रांति के गीत गाना चाहता हूँ
No comments:
Post a Comment