मैं सड़क के आख़िरी कोने से दूसरी मंज़िल की उस खिड़की पे बत्तियाँ जलने का इंतेज़ार कर रहा हूँ। पर आज शायद वो देर से उठेगी। ऑफिस जाने के लिए उठती थी, आज क्यूँ उठेगी । उसे तो मालूम भी नही की मैं यहाँ खड़ा हूँ।
कुछ साल भर पहले उसने अपने घर पे हमारे रिश्ते की बात की थी। हंगामा हुआ था बहुत। कुछ रोज़ ऑफिस भी नही आई थी वो।जब मुलाकात हुई पहली बार तो हिचक़ियों और आसुओं के बीच दो चार शब्द ही निकले होंगे। कान सुनना तो चाह रहे थे पर आँखें देखने मे व्यस्त थी, वो जितना बोल पाती मैं उससे ज़्यादा सुन चुका था। रोज़ मिलते थे उसके बाद। सुबह मैं यूँ ही यहाँ आकर खड़ा रहता, शाम घर तक साथ आता। मालूम नही था आगे क्या होना है, बस जानता था जितना वक़्त साथ दे सकूँ देना था। समझाता था, बहलाता था की रोने से कुछ नही होगा,वो और रोती थी।
इक रोज़ पूछा मैने की भाग चलें? रोई नही, उस रोज़ खामोश थी पर रोई नही। उसके बाद मैं भागने के नये तरीके बताता, वो डाँट्ती, कभी हँसती; कभी हंसते हंसते रोने लगती। मैं रोज़ उससे कहता की देखना एक दिन ये सारी बातें याद करके हम दोनो मुस्कुराएँगे। वो नही मानती।
आज उसकी शादी है। रात के 10 बज रहे हैं। काफ़ी लोग हैं। सब के चेहरे खुश हैं। मैं खामोश हूँ। कुछ कहना चाहता हूँ उससे पर शब्द नही मिल रहे। स्टेज पर वो खड़ी हुई है, आज मुस्कुरा रही है। इस साल भर मे उसकी आँखें जितनी रोई थी आज उससे ज़्यादा मुस्कुरा रही हैं। मैने उससे कहा "शादी मुबारक हो!" हैरत से देखा उसने मेरी तरफ और फिर मुस्कुराई। मैने हँसके कहा उससे की काफ़ी खुश लग रही हो। आँखों और होठों दोनो पे हँसी थी उसके जब उसने कहा "खुशी क्यूँ ना हो? आज हमारी शादी है!"
Anjan
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