Wednesday, November 5, 2014

तेरे बाद न जाने कैसे, जीना मैंने सीख लिया है
प्रेम पुष्प को जिस आंसू से, कल तक मैं सींचा करता था
उसको ही मधुपान समझकर, पीना मैंने सीख लिया है

तेरे बाद न जाने कैसे, जीना मैंने सीख लिया है

नहीं थका करते थे मेरे, अधर तुम्हारी बातें करते
एकाकीपन में अधरो को, सीना मैंने सीख लिया है

तेरे बाद न जाने कैसे, जीना मैंने सीख लिया है

बेतरतीब जिया करता था, साये में तेरे आँचल के
किन्तु अब सुनियोजित ढंग से, जीना मैंने सीख लिया है

तेरे बाद न जाने कैसे, जीना मैंने सीख लिया है

याद जो तेरी सोने मुझे नहीं देती थी,
याद जो तेरी हर सुबह जगाया करती थी
उन यादों को, सु-स्वपन समझ कर
भूलना मैंने सीख लिया है
तेरे बाद न जाने कैसे, जीना मैंने सीख लिया है

आशिकों के देख हालात, था मैं उलझन में
बना रहूँ गुमनाम, या रहूँ खबर में
गुमनामी में, जीवन का मकसद पाना मैंने सीख लिया है
तेरे बाद न जाने कैसे, जीना मैंने सीख लिया है

कोई काँटा चुभा नहीं होता
दिल अगर फुला सा नहीं होता
बेवफाई को तेरी मज़बूरी समझना सीख लिया हैं
तेरे बाद न जाने कैसे, जीना मैंने सीख लिया है

जब पलकें झपका के, नभ में तारे हस्ते थे
मुझे याद तुम्हारी आती थी,
तुम राह दिखती थी मंजिल की,
जीवन सुहाना लगता था,
लेकिन अब आँखों से लाचार, इन दृश्यों से आँखे मूंदना सीख लिया हैं
तेरे बाद न जाने कैसे, जीना मैंने सीख लिया है

~~ अभिषेक तिवारी ‘ अजेय ‘

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