सुबह से ही आज एक अजीब सी ख़ुशी है, वैसे तो खालीपन सा है आजकल, शायद उसके चले जाने का गम है लेकिन जब आत्मविवेचन करता हूँ तो अपने को ही गुनहगार पता हूँ
सही भी है, उसकी यादों का भगोड़ा अपराधी जो हूँ, कभी कभी चीज़ों का बिखर जाना अछा और सुकून देता है, जीवन में क्या क्या पा लिया था एहसास होता है, और जब चीज़ें हाथ में रेत की तरह फिसलती हैं तो एक अजीब सी तिस होती है,
खैर जब अपने गुनाहों का बोध होता है तो गम कुछ काम हो जाता है, सच ही है, पछतावा काफी कुछ सीखा देता है,
पेशे से हूँ तो एक इंजीनियर लेकिन दिल से एक लेखक और कवि हूँ, सच पूछिये तो लिखना उसी को देख कर आया, अपने जीवन की जो कुछ बेहतरीन नज़्में है वो उसी के लिए लिखी हैं, आज ३ महीने होने आये कुछ नहीं लिखा, एक खली पण सा दे गयी वो, ऐसा लगता है मनो जीवन की नायिका ही मर चुकी है.
हमेशा से कहती थी, आप अजीब और बहुत अच्छे इंसान है, माता जी भी यही कहती थी, माताजी के कहने का कभी कोई असर नहीं पड़ा लेकिन अब जब वो जा रही है, एहसास होता है की कितना अजीब हूँ, अच्छा हूँ या नहीं वो शायद वही बता पाये,
अंतिम मुलाकात हुई दिवाली की दूसरी रोज़, ऐसा लग रहा था जैसे बस वक़्त थम जाये और महसूस करता रहूँ, कहने को तो १० मं समय लेके आई थी, लग रहा था जैसे चीज़ों से भाग रही है, लेकिन जब चीज़ें दिल से जुडी होती हैं तो उनसे भागना उतना ही मुस्किल होता है, १० मं का वो समय एक घंटे २५ मं में कब बदल गया पता ही नहीं चला,
हाँ तो मैं गुनहगार हूँ, अंतर मन में झाँका तो पाया की हूँ भी और बदल भी नहीं सकता, बस यही बताना था उसको, और यह भी की, अपने इस ऐब के अंदर भी शिद्दत से मुहब्बत की है, था मैं थोड़ा अजीब, गलतियों से भरा इंसान और उसकी एहमियत सिर्फ ये नहीं थी की मुहब्बत थी उससे बल्कि इसलिए भी थी की उसने जीवन का वो पहलु से रूबरू कराया जो शायद उसके न आने से नहीं देख पता,
आप दुनिया में सबके सामने एक महान, बलवान आदमी हो सकते हैं लेकिन जिससे दिल के रिश्ते होते हैं उनके सामने आपको ये सब भूलना पड़ेगा, भावनाओं का भी यही है, जो महसूस करते हैं है उसको दिखने में हर्ज़ ही क्या है? आखिर भावनाएं भी उसी क लिए हैं न.
ये तो नहीं जनता की किस्मत में क्या है, लेकिन उसके जाने से एक खलीपन सा घर कर गया है जीवन में, उसकी नादानी, बच्चों सी हरकत सब जैसे एक सिनेमा के दृश्य जैसे आँखों के सामने आज भी वही रंगीनियाँ लिए हैं, यूँ तो साल भर पुरानी बात है लेकिन मनो लगता है जैसे अभी कुछ मिनटों पहले की बात हो
"आप मुझसे नाराज़ तो नहीं हैं न" ..... से ...... "अपना ख्याल रखियेगा" तक का सफर सचमुच बहुत ही डरावना है और लगता है जैसे मैं आज भी बच्चों से ज़िद और बच्चों सा डरता हूँ :)
~~ अजेय